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    न्यायालय के बारे में

    खंडवा का न्यायिक इतिहास:

    नागरिक प्रशासन में, नागरिक प्रकृति के मामलों में न्याय प्रशासन का निपटारा अधिकारियों द्वारा किया जाता था, लेकिन जिन मामलों का निपटारा अधिकारी नहीं कर पाते थे, उन्हें स्थानीय निवासी पंचायत के माध्यम से निपटाया जाता था। वर्ष 1846 में कलेक्टर एवं सहायक अधीक्षक की नियुक्ति से दीवानी मामलों का न्यायिक समाधान प्रारम्भ हुआ। उस समय आपराधिक मामलों की दृष्टि से निमाड जिला प्राय: अपराध मुक्त था।

    जब 1864 में निमाड़ क्षेत्र को मध्य प्रांत में शामिल किया गया, तो न्यायिक प्रशासन के लिए एक नई व्यवस्था बनाई गई। जिले में क्षेत्रफल के अनुसार उपविभाग बनाये गये। इन सभी प्रभागों में कुछ दीवानी एवं फौजदारी क्षेत्राधिकार भी दिये गये थे। उस समय सभी अदालतें नर्मदा संभाग के आयुक्त की अध्यक्षता वाले सत्र न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के अंतर्गत थीं।

    1885-86 में न्यायिक पुनर्गठन किया गया और मध्य प्रांत न्यायालय अधिनियम लागू किया गया। तदनुसार, दीवानी मामलों के निपटारे के लिए खंडवा शहर में मुंसिफ न्यायालय की स्थापना की गई। 14 मई 1917 को मध्य प्रांत न्यायालय अधिनियम लागू हुआ जिसके तहत सिविल न्यायपालिका का पुनर्गठन किया गया और मध्य प्रांत को 9 जिलों में विभाजित किया[...]

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    HONBLE SHRI JUSTICE SURESH KUMAR KAIT
    माननीय मुख्य न्यायाधिपति माननीय श्री सुरेश कुमार कैत
    माननीय श्री दिनेश कुमार पालीवाल
    माननीय पोर्टफोलियो न्यायाधिपति माननीय श्री दिनेश कुमार पालीवाल
    श्रीमती ममता जैन
    प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती ममता जैन

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